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त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान

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किसान दिवस विशेष 23 दिसम्बर   किसान शब्द अपने आप में बहुत ही विस्तृत ओर व्यापक है किन्तु जैसे यह शब्द सुनते ही सभी के दिमाग में एक अलग ही छवि सी बन जाती है जैसे कोई खेत में हल जोत रहा है और माथे पर चिंता की लकीरें लिए आसमान की तरफ देख रहा है ,फसलें हरीभरी होने के लिए वर्षा की पुकार कर रहा है वही किसान देश का अन्नदाता कहलाता है जिनके बगैर अन्न का एक दाना भी मिलना मुश्किल है त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान, वह जीवन भर मिट्‌टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते, किसान दिन रात मेहनत कर अपने पसीने के खेत सींचकर हमारे लिए फसल उगाता है तब जाकर हमारा पेट भर पाता है अगर फसल की पैदावार बेहतर नहीं हुई तो किसान के साथ साथ, रसोई से लेकर, देश भर में महंगाई की चर्चा शुरू हो जाती है हमारे थाली में भरा पूरा पकवान इसलिए रहता है क्योंकि किसान खलिहान में पसीना बहाता है अपने खेत की मिट्टी में खुशियों के बीज लगाकर अपने खून पसीने से सींच कर उत्पादन पैदा करता है और सारे लोगों का पेट भरता है। हमारे देश की लगभ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्र साधना के 96 वर्ष

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विजयादशमी : संघ स्थापना दिवस विशेष राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर विजयादशमी के दिन नागपुर में प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, वह संघ आज अपनी विकास यात्रा के 96 वर्ष पूर्ण कर चुका है , नागपुर से शुरू हुआ संघ विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस वटवृक्ष की छांव में भारत की संस्कृति और परम्परा पुष्पित पल्लवित हो रही है। आज विभिन्न संगठन विविध क्षेत्रों में संघ से प्रेरणा लेकर कार्य कर रहे हैं, विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाले संघ के आनुषांगिक संगठन विश्व के शीर्ष संगठनों में शुमार हैं, विजयादशमी के दिन स्थापित संघ के स्वयंसेवक आज भारत के कोने-कोने में देश-प्रेम, समाज-सेवा, हिन्दू-जागरण और राष्ट्रीय चेतना की अलख जगा रहे हैं। भारत की सर्वांग स्वतंत्रता, सर्वांग सुरक्षा और सर्वांग विकास के लिए संघ सन् 1925 से बिना रुके और बिना झुके कार्य कर रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है ,भारत में ही नहीं, विश्वभर में संघ के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में विभिन्न स

सादगी की प्रतिमूर्ति थे ,लाल बहादुर शास्त्री

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सादगी की प्रतिमूर्ति थे ,लाल बहादुर शास्त्री

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जन्म जयंती विशेष   2 अक्टूबर के दिन देश की राजनीति के अधिकांश नेता जिनको याद करना भूल जाते है आरोप-प्रत्यारोप करने वाले नेतागण उस महान शख्स की महानता को नहीं समझ सकते जिन्होंने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी किसी गलत कार्य से नहीं की ,ऐसे महान शख्स का नाम है लाल बहादुर शास्त्री जिनका जन्म आज ही के दिन 2 अक्टूबर, 1904 को एक सामान्य निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था। भारतीय राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री का नाम अगर स्वर्णाक्षरों से लिखे जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही है ,पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व थे. उनका पूरा जीवन हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है। एक गरीब स्कूल शिक्षक के सुपुत्र व कम उम्र में ही अनाथ हो जाने वाले शास्त्री ने गरीबी में जीवन गुज़ारा ,इसीलिए उन्हें जनता की ज़रूरतों, उनके दुखों व कष्टों का अच्छे से भान था. शास्त्री अनवरत् जूझने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने नौ साल अंग्रेजो की जेल में गुज़ारे थे. वे बेहद प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, उत्साह, उमंग व जोश से भरे, अपने लक्

अतुलनीय है हिंदी भाषा , फिर भी उपेक्षा क्यो ?

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अतुलनीय है हिंदी भाषा फिर भी उपेक्षा क्यो

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पर्यावरण पर गहराता संकट भविष्य के लिए वैश्विक चुनौती

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पर्यावरण पर संकट वैश्विक चुनौती

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कोरोना काल मे भी देशभर में सेवा कार्य में जुटा हुआ है संघ

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भारत मे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र समक्ष है काफी चुनोतियाँ

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कोरोना महामारी वैश्विक संकट : जिम्मेदारी एंव कर्तव्य सभी वर्ग का

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पर्यावरण पर गहराता संकट, भविष्य के लिए वैश्विक चुनौती

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पर्यावरण यानि हमारे चारों और मौजूद जीव-अजीव घटकों का आवरण, जिससे हम घिरे हुए हैं जैसे कि जीव-जंतु, जल, पौधे, भूमि और हवा जो प्रकृति के संतुलन को अच्छा बनाएं रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है किंतु जब पर्यावरण शब्द के साथ संकट जुड़ गया तब से विश्व में पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मानने की आवश्यकता महसूस हुई इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसके बाद हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण शब्द सुनने को मिलता है किंतु आजतक इतने वर्षों में क्या हम जागृति ला पाए है पर्यावरण के प्रति , पर्यावरण कार्य हेतु दुनियाभर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है तथापि हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता पड़ रही है। आजकल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर भले ही इस अवसर पर बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जाएं, बड़ी बड़ी गोष्ठियां ओर सम्मेलन किये जाएं या हज़ारों पौधा-रोपण किए जाएं और

कोरोना काल में भी देशभर में सेवा कार्य में जुटा हुआ है संघ

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आज के समय मे पूरा देश कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से त्राहिमाम कर रहा है। पूरा देश कोरोना की इस दूसरी लहर की वजह से परेशान है। देश मे अधिकांश राज्यो में आंशिक लॉकडाउन जैसी स्थिति है। हर तरफ हाहाकार मचा हुआ, कुछ जगह कोरोना के कारण दम तोड़ती जिंदगी ,कुछ जगह मेडिकल उत्पादों पे होती कालाबाजारी ,कुछ जगह जवाब देती इंसानियत ,इसके अलावा देश में कभी कोरोना के नाम पर कभी वैक्सीन पे तो कभी अस्पतालो और मेडिकल सुविधा पर ख़ूब हो रही राजनीति किन्तु इनके अलावा देश के साथ खड़ा है एक ऐसा संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके स्वयंसेवक जो कोरोना काल मे दूत बनकर सामने आए हैं और लगातार लोगों की सेवा कर रहे हैं। देश के हर हिस्से में संघ के स्वयंसेवक पूरी तन्मयता से लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। संगठन जो सोशल मीडिया से मिलने वाली प्रतिष्ठा और सम्मान से दूर अदृश्य होकर लोगों की सेवा में जुटा हुआ है और आज भी लगातार सेवा कार्य ही कर रहा है। कोरोना महामारी ने मानवता को भी कुचल कर रख दिया है. यदि कोई संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो वो भी संक्रमित हो जाता है. इस सबके बावजूद राष्ट्रीय स्वयं

वीर सावरकर जयंती विशेष : हिंदुत्व के पुरोधा थे

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आज हम याद कर रहे हैं स्वातन्त्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को। आज का दिन विशेष इसलिए हो जाता है क्योंकि महान स्वंतत्रता सेनानी वीर सावरकर का आज ही के दिन जन्म हुआ था। वीर सावरकर एक हिंदुत्ववादी, राजनैतिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी थे। सावरकर पहले स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे जिन्होंने ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। भारत स्वतंत्रता के अग्रदूत वीर सावरकर का जन्म आज ही के दिन 28 मई, 1883 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम राधाबाई सावरकर और पिता दामोदर पंत सावर

भारत की सुरक्षा ताकत (मिलिट्री डिफेंस) का आंकलन

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अद्भुत है ! भारतीय नववर्ष की परिकल्पना

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त्यौहारों की धरती भारत में हिन्दू नववर्ष में खास महत्त्व है. चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा या युगादि भी कहा जाता है. इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है. किवदंतियों के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था, तो इसी दिन से नया संवत्सर (नवसंवत्सर) भी शुरू होता है. शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है. जीवन का मुख्य आधार 'वनस्पतियों को सोमरस' चंद्रमा ही प्रदान करता है और इसे ही औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है. संभवतः इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है. नववर्ष की प्रणाली ब्रह्माण्ड पर आधारित होती है, यह तब शुरु होता है जब सूर्य या चंद्रमा मेष के पहले बिंदु में प्रवेश करते हैं। चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है। इसी कारण प्रथम श्रेय चैत्र को ही मिला और वर्षारंभ के लिए यही उचित समझा गया।  जितने भी धर्म कार्य होते हैं, उनमें सूर्य के

बंगाल विधानसभा चुनाव देश की राजनीति के लिए भविष्य की दिशा भी तय करेगा

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बंगाल एक बार फिर चर्चा में है, बंगाल की राजनीति में बेहद उथल-पुथल है। चुनाव सिर पर हैं और ऐसा माना जा रहा है कि साल 2021 पश्चिम बंगाल का होगा। क्योंकि, पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे ,पश्चिम बंगाल चुनाव 2021 सिर्फ एक राज्य की सरकार बनाने की कवायद के लिए नहीं होगा. ये मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच सत्ता संघर्ष भी नहीं है. बंगाल चुनाव के नतीजे देश में विचारधारा की लड़ाई को नया मोड़ देंगे. पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव बीते दस साल से सत्ता में रही तृणमूल कांग्रेस और अबकी सत्ता के सबसे बड़े दावेदार के तौर पर उभरती भाजपा के लिए नाक और साख का सवाल बन गया है।  बीते लगभग पांच दशकों में यह तीसरा मौका है जब 294 सीटों वाली इस विधानसभा के लिए होने वाला चुनाव देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुर्खिया बटोर रहा है। लेकिन राज्य की राजनीति में खासकर बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली कामयाबी के बाद इन विधानसभा चुनावों के मौके पर नया मोड़ ला दिया है सत्ता की प्रमुख दावेदार के तौर पर उभरी भाजपा की ओर से मिलने वाली कड़ी चुनौतियों की वजह से तृणमूल कांग्रेस प्

राजनीतिक लाभ लेने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान विद्या भारती की कट्टरपंथियों से तुलना करना अशोभनीय

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  मनुष्य के जीवन मे सबसे बड़ी पूँजी है शिक्षा ,ओर मनुष्य बचपन से लेकर जब तक बड़ा होता तब तक शिक्षा ही प्राप्त करता है । किन्तु देश मे शिक्षा के नाम पर राजनीति करना यह आमचलन हो गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों की तुलना पाकिस्तानी कट्टरपंथी मदरसों से करना कतई सोभनीय नही है .राजनीतिक लड़ाई स्वाभाविक है दरअसल आरएसएस की अलग ही विचारधारा है, जिस विचारधारा की पार्टी भाजपा केंद्र में है. लेकिन सवाल है कि इस विचारधारा से जुड़े स्कूलों की तुलना पाकिस्तान के चरमपंथी मदरसों से करना उचित है?  चंद सेकेंड की इस टिप्पणी में करीब 95 साल पुरानी देश की राष्ट्रवादी संस्था के भूत-भविष्य और वर्तमान को कठघरे में खड़ा कर दिया.आरोप है कि अपने स्कूलों के जरिए देश की शिक्षा व्यवस्था पर संघ कब्जा कर रहा है. पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी मदरसों में सिर्फ और सिर्फ नफरत फैलाने के लिए जिहादी पढ़ाई होती है, जिससे आतंकी पैदा होते हैं. आज की तारीख में पूरा पाकिस्तान आतंकी देश बन चुका है. लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों और चरमपंथी मदरसों में कोई

“मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा”

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27 फरवरी 1931 को भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद सच में 'आजाद' हो गए थे. इस दिन को जहां लोग मायूसी के लिए जानते हैं वहीं इसी दिन को गर्व के लिए भी जानते हैं. मायूसी इसलिए क्योंकि इसी दिन भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद ने करोड़ों भारतीयों को अलविदा कह दिया था. गर्व इसलिए क्योंकि आजाद ने कहा था कि वह कभी किसी ब्रिटिश सरकार के हाथों में नहीं आएंगे और ना ही उनकी गोली से मरेंगे. इस लिए उन्होंने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए. आज ही के दिन चंद्रशेखर आजाद की मौत इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क अब चंद्रशेखर आजाद पार्क में हो गई थी. “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” यह नारा था भारत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले देश के महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का। मात्र 24 साल की उम्र जो युवाओं के लिए जिंदगी के सपने देखने की होती है उसमें चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए। बहुत छोटी उम्र 14-15 साल की उम्र में चन्द्रशेखर आजाद को ब्रिटिश सरकार द्वारा आंदोलन में भूमिका लेने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्त

बसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है

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बसंत पंचमी यानी नई चेतना का प्रारंभ होने या नव ऋतु का आगमन होना ,बसंत पंचमी भारतवर्ष में हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार एंव उत्सव है इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा का विधान है बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। भारत में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती की पूजा का दिन माना गया है। हिंदू धर्म में माँ सरस्वती वाणी और अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री हैं। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, सूर्य रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। विहंग भी उड़ने का बहाना ढूंढते हैं। किसान की लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों की खुश्बू अलग ही प्रतीत होती है, जहा

पुलवामा अटैक: 14 फरवरी का दिन दुःखद ,स्वर्ग जैसी धरती हुई थी खून से लहूलुहान

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14 फरवरी, यह तारीख कभी भूली नहीं जा सकती है। क्योंकि किसी ने कभी सोचा नही होगा सुबह से शाम तक क्या हो जाएगा । क्योंकि जब पूरे विश्व में ओर भारत मे प्यार ओर मोहब्बत का जश्न मनाया जा रहा था ओर एक तरफ देश में प्रेमी जोड़े 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मना रहे थे। उस वक्त हिन्दुस्तान के जम्मू-कश्मीर में कुछ बड़ा हुआ था । आतंकवादियों ने दिल को दहला देने वाली वारदात को अंजाम दिया था। वहीं दूसरी तरफ स्वर्ग जैसी धरती जवानों के खून से लहू-लुहान हो गई थी। आज ही के दिन साल 2019 की 14 फरवरी को सुबह आम ही थी लेकिन दोपहर काली रही।  तारीख 14 फरवरी, यानी आज ही के दिन वार गुरुवार को 78 बसों में 2547 जवानों का काफिला जम्‍मू से श्रीनगर जा रहा था और इसकी जानकारी न जाने कहां से आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को लग गई। क्योंकि इसी संगठन ने फिदायीन हमले की जिम्मेदारी ली थी।  जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में इसी सीआरपीएफ की बटालियन पर फिदायीन हमला हुआ। इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए ओर देश के कोने कोने में 40 घर एक साथ वीरान हो गए। बहादुर जवानों का शव सड़कों पर बिखरा पड़ा था, बसें खून से सनी हुईं

केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट में सोमवार को कृषि सेक्टर के लिए कई अहम ऐलान किए।

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वर्ष 2021-22 के लिए केंद्रीय बजट पेश कर रहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि सेक्टर के लिए एग्रीकल्चरल क्रेडिट टारगेट (कृषि ऋण लक्ष्य) और अधिक बढ़ाए जाने की जानकारी दी। साथ ही  वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि उनकी सरकार किसानों की बेहतरी के लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश करते हुए बताया कि 2021-22 में किसानों को अधिक कृषि ऋण उपलब्‍ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य 16.5 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि पिछली बार यह 15 लाख करोड़ रुपये का था। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। सभी फसलों पर उत्पादन लागत का कम से कम 1.5 गुना अधिक एमएसपी दी जा रही है। उन्होंने कहा, ''हमने किसानों को 75 हजार करोड़ रुपये ज्यादा दिए हैं। किसानों को दिए जाने वाले भुगतानों में भी तेजी की गई है।'' उन्होंने बताया की गेहूं पर  2013-14 में गेहूं किसानों को कुल 33 हजार 874 करोड़ रुपये दिए गए थे, जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 62 हजार करोड़ से ज्यादा हो गया। 2020-21 के दौरान भी इसमे

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती विशेष

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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती विशेष

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कृषि बजट 2021 2022

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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती विशेष: हर भारतीयों के लिए पराक्रम के प्रतीक

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और जय हिन्द का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस जी की आज जयंती है. 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक नामक नगरी में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ था.उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में इतिहास में अमर है।  अपनी विशिष्टता तथा अपने व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके पिता कटक शहर के मशहूर वकील थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया। 16 वर्ष की आयु में उनके कार्यों को पढ़ने के बाद वे स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की शिक्षाओं से प्रभावित हुए। फिर उन्हें आईसीएस में पास होकर दिखाना था। आईसीएस की तैयारी के लिए उनके माता-पिता द्वारा इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया गया। उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आईसीएस की परीक्षा पास कर ली। लेकिन अप्रैल 1921 में, भारत में र