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कहानी गाँव की

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कहानी गाँव की " स्वयंरचित छोटी सी रचना आज के * भारत मंथन * दैनिक समाचार पत्र में 😊😊

6 दिसंबर 1992 के बिना भव्य राम मंदिर निर्माण की कल्पना क्या संभव थी ।

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  6 दिसंबर 1992 की वो शुभ तारीख ... जिसने बदल कर रख दिया इतिहास, हर धुरी बदल गयी यानी उस दिन हर तरफ जय श्री राम के नारों के अलावा कुछ नजर नही आ रहा था। चारों तरफ धूल ही धूल थी ओर धूल में भक्ति का सरोबार चरम पर था । किन्तु यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह शुभ कार्य किसी आंधी से कम भी नहीं था। अपार जनसैलाब था । इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि भीड़ हजारों में थी या लाखों में। हां, एक बात जो उस पूरी भीड़ में थी, वह था-जोश और जुनून। इसमें रत्तीभर भी कमी नहीं थी। ऐसा लग रहा था-जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति अपने आप में एक नेता था। ‘जय श्रीराम', ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे', ‘एक धक्का और दो. जैसे गगनभेदी नारों के आगे आकाश की ऊंचाई भी कम पड़ती दिख रही थी, 6 दिसंबर के भोर का अरुणोदय, लाखों युवाओं को तरुनोदय दे रहा था। अरुणोदय के दौरान फूट रही सूर्य की किरणें किसी नवोदित सन्देश को समेटे थीं, जिसकी जानकारी सिर्फ सूर्य भगवान को ही थी । सब यह क्यो हो रहा था ,ओर कहा हो रहा था ,क्योंकि जुल्मो ओर आक्रांताओं के विरोध की लड़ाई थी, प्रभु भगवान श्री राम के अस्तित्व की लड़ाई थी , जी हाँ हम बा

अब पत्रकारिता के दमन पर ,अभिव्यक्ति की आज़ादी कहा है

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4 नवंबर यानी बुधवार की तरोताजा सुबह ने मुंबई में जैसे आपातकाल की याद दिला दी हो यानी अभिव्यक्ति की आजादी जैसे सो कोस दूर हिलोरे मार रही हो ,स्वंत्रता की आजादी जैसे गड्ढे में दम ले लिया हो । हुआ ऐसा की रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को आज सुबह मुंबई पुलिस ने जिस तरह एक पुराने मामले में गिरफ्तार कर लिया है, गिरफ्तार करना किसी पत्रकार के साथ बदसलूकी करना जैसे एक बदले की राजनीति हो रही हो। सब ड्रामा जैसे राज्य सरकार के अधीन हो जैसे किसी के कहने पे चाले चली जा रही हो । किसी को खुलकर बोलने की यह कीमत चुकाई जा रही हो ।सब दुर्भाग्यपूर्ण तो था किंतु किसे इस से क्या मतलब , क्योंकि किसी को अपना उल्लू सिद्ध भी करना था, क्यो नही हो अपनी सरकार है ना। गौरतलब है कि रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी का बड़ा कारण उनका बेबाकी से सरकार के खिलाफ बोलना है, जिसके चलते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे औऱ उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस उनके समर्थकों की किरकीरी होती रहती है. इतना ही नहीं अभिनेत्री कंगना को भी शिवसेना के खिलाफ मुंह खोलने की कीमत अपना दफ्तर तुड़वाकर चुकान

भारत की महान बेटी भगिनी निवेदिता का भारत से जुड़ाव - जन्म जयंती विशेष

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आज 28 अक्टूबर की बात करे तो स्वामी विवेकानंद जी की शिष्या भगिनी निवेदिता का स्मरण करना आवश्यक हो जाता है । स्वामी विवेकानंदजी को याद करने पर सिस्टर निवेदिता का याद आना स्वाभाविक है। वे न केवल स्वामीजी की शिष्या थीं, वरन् पूरे भारतवासियों की स्नेहमयी बहन थीं। सिस्टर निवेदिता का असली नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल था। स्वामी विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता का जन्म 28 अक्टूबर, 1867 को आयरलैंड में हुआ था। वे एक अंग्रेज-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक एवं एक महान शिक्षिका थीं। भारत के प्रति अपार श्रद्धा और प्रेम के चलते वे आज भी प्रत्येक भारतवासी के लिए देशभक्ति की महान प्रेरणा का स्रोत है। स्वामी विवेकानन्द से प्रभावित होकर आयरलैण्ड की युवती मार्गरेट नोबेल ने अपना जीवन भारत माता की सेवा में लगा दिया। प्लेग, बाढ़, अकाल आदि में उन्होंने समर्पण भाव से जनता की सेवा की।  बचपन से ही मार्गरेट नोबेल की रुचि सेवा कार्यों में थी। वह निर्धनों की झुग्गियों में जाकर बच्चों को पढ़ाती थी। निवेदिता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लन्दन के चर्च बोर्डिंग स्कूल से प्राप्त की। बाद में वे कॉलेज में पढने लग

आज ही के दिन हुआ था जम्मू कश्मीर का भारत मे विलय ,महाराजा हरि सिंह ने लिया था बड़ा फैसला

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                     ( फोटो :- विकिपीडिया) 26 अक्‍टूबर भारतीय इतिहास की वो तारीख है, इतिहास में इस तारिख का अलग ही महत्व है क्योंकि जिसे कोई चाहकर भी भूल नहीं सकता है क्योंकि आज के ही दिन धरती के स्वर्ग यानी कश्मीर भारत को नसीब हुआ था। 26 अक्‍टूबर 1947 को ही कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। जम्मू-कश्मीर का विलय भारत की राजनीति और इतिहास की सबसे अहम घटनाओं में से एक रही। आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान की तरफ से मिल रही चुनौती के बीच जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय कराने में मिली सफलता ने उस समय इतिहास रच दिया था। आज ही के दिन जम्‍मू कश्‍मीर के महाराजा हरिसिंह ने राज्‍य के भारत में विलय के लिए एक कानूनी दस्‍तावेज को साइन किया था। इस दस्‍तावेज को 'इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एक्‍सेशन' कहा गया, जिस पर हस्ताक्षर करते ही कश्मीर अधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया, हरि सिंह ने ये सब अपनी सहमति से किया था क्योंकि वो भारत के प्रभुत्‍व वाला राज्‍य मानने पर सहमत हो गए थे। इस विलय के साथ ही भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर का मोर्चा संभाल लिया था। इतिहास में वर्णित है कि महाराजा हरि सिंह 25 अक्‍ट

विजयादशमी पर शस्त्र पूजन का धार्मिक महत्व ,संघ क्यो करता है शस्त्र पूजन

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फ़ोटो साभार: - गूगल भारत में आश्विन मास की नवमी अर्थात नवरात्रि समाप्त होने के बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। दरअसल यह पर्व भगवान श्री राम की लंकापित रावण पर जीत का उत्सव है तो दूसरी ओर यह हमारी एतिहासिक परंपराओं के निर्वहन का त्यौहार भी है। हर साल विजयादशमी का पर्व बड़ी धूमधाम से बनाया जाता है इस दिन शस्त्र पूजन का विधान है ये प्रथा कोई आज की नहीं है बल्कि सनातन धर्म से ही इस परंपरा का पालन किया जाता है. इस दिन शस्त्रों के पूजन का खास विधान है. ऐसा माना जाता है कि क्षत्रिय इस दिन शस्त्र पूजन करते हैं जबकि ब्राह्मण इस दिन खासतौर से शास्त्रों का पूजन करते हैं. विजयादशमी पर्व यानि बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार, अधर्म पर धर्म की जीत का त्यौहार. इस बार ये पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस त्यौहार पर शस्त्र पूजा का खास विधान है यहां तक कि हमारी सेना में विजयादशमी के पर्व पर शस्त्र पूजन किया जाता है. विजयादशमी के दिन जो भी कार्य शुरु किया जाए उसमें सफलता निश्चित रूप से मिलती है. आज भी शस्त्र पूजन की ये परंपरा प्राचीन काल से जारी है उस वक्त भी योद्धा युद्ध पर जाने के लिए दशहर

देश में संकट की हर घड़ी में देवदूत की तरह कार्य करता है संघ ,हमेशा की तरह फिर लगा सेवा कार्यो में.

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जब भी देश में कहीं भी विपदा आती है ,जैसे बाढ़ ,भारी वर्षा, प्राकृतिक आपदा अन्य किसी प्रकार की विपदा, तब एक संगठन ऐसा है जो बिना स्वार्थ भाव ,ना दिन देखे ना रात उनकी सेवा में लग जाता है ,कोरोना महामारी जैसी समस्या में जहाँ पूरा भारत घरों में कैद था तब भी यह संगठन बिना स्वार्थ नीति के बिना जान की चिंता किए लोगो की सेवा में लगा रहा । ऐसे संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जिसके स्वयंसेवक बन्धु जहाँ कहि विपदा आती वहाँ सब से पहले पहुँच जाते ,तथा उनकी मदद में लग जाते है , हर समय विरोधियों की आलोचना सहने वाला संघ ,अपने समाजिक कार्यो में अनवरत लगा रहता न जाने विरोधियों द्वारा क्या-क्या नाम से पुकारा जाने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोग अपने कार्य मे अनवरत लगे रहते है है मगर सच तो यह है कि प्राकृतिक आपदा आने पर प्रभावित क्षेत्रों में जितना स्वयंसेवक सक्रिय होकर पीड़ितों की मदद करते हैं, उतनी सहायता शायद ही कोई और संगठन करता हो।  बात करे थोड़े दिन पहले की तो केरल में आयी प्राकृतिक आपदा से भयावह हुई स्थिति के मद्देनजर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शहर के भिक्षाटन अभिय

अब पुजारी जी की घटना पे हर कोई शांत क्यो , कांग्रेस की गंदी राजनीति

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राजस्थान के करौली जिले में राधा गोविन्द मंदिर के 50 वर्षीय पुजारी बाबूलाल वैष्णव को एक भू-माफिया और उसके साथियों ने बृहस्पतिवार (अक्टूबर 08, 2020) को जिन्दा जला दिया। पुजारी को इस घटना के बाद जयपुर के SMS अस्पताल में भर्ती कराया गया था उनकी मौत हो गई।  पुजारी जी को 6 लोगों ने पेट्रोल डालकर आग के हवाले कर दिया। दरअसल, पुजारी ने भू-माफियाओं को मंदिर की इस जमीन पर अतिक्रमण करने से रोकने का प्रयास किया था, जिसके बदले पुजारी को अपनी जान गँवानी पड़ी। क्यो जान गवानी पड़ी और किसलिए हुआ यह समझने की बात है ,क्या किसी पुजारी की ऐसे हत्या कर दी जाए और सिर्फ 10 लाख ओर सविंदा नोकरी पे न्याय मिल जाये सच तो यह वर्तमान राजस्थान सरकार के लिए यह इतना ही न्याय है । घटना होने के मुद्दे आज तक इतना समय हो गया जो छोटी छोटी घटनाओं पे जो गिद्ध राजनीति करते और हमेशा हर मुद्दे को दलित मुद्दे से जोड़ देने वाले लोगो मे अब तक आंख में एक आंसू नही छलका है । वह बॉलीवुड जो देश छोड़ने की धमकी देता ,इस देश मे रहने से उनको डर लगता है ,पहले महाराष्ट्र में हुई साधुओं की हत्या अब राजस्थान में हुई पुजारी की हत्या पे च

तीन नए कृषि अध्यादेशों का समग्र मूल्याकंन

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कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु आए नए तीन कृषि अध्यादेशों का समग्र मूल्यांकन

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 भारत उन विकासशील देशों में से है जिनकी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर है। इसी कारण दुनिया के नक्शे पर भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, इसी कारण तकनीकी युग में भी खेती-बाड़ी कुछ लोगों का मुख्य व्यवसाय है। किन्तु आज के परिदृश्य में देखा जाए तो किसानों के सामने बहुत सी विकट समस्याएं है जिनका निवारण आज तक सम्भव नही हुआ, गत वर्षो में बहुत सी सरकारे आई और चली गयी सिर्फ किसानों और कृषि वर्ग की समस्याओं पर लीपापोती ओर राजनीति होती रही। किन्तु अब बात हो रही किसानों के लिए लाए गए कृषि सुधार नए विधेयकों की जिस कारण जगह जगह विरोध हो रहा विरोध क्यों हो रहा ,ओर इसके पीछे क्या कारण ,क्या वजह है समझने की आवश्यकता है क्या पक्ष और क्या विपक्ष के तर्क है समझते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों से जुड़े तीन अध्यादेश जून 2020 में लेकर आई, जिन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन व सुविधा) अध्यादेश, दूसरा मूल्य आश्वासन एवं कृषि समझौता अध्यादेश और तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश। नए अध

11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिया अमेरिका में ऐतिहासिक भाषण

आज ही के दिन यानी 11 सितम्बर 1893 को विश्व पटल पर भारत की पहचान बनी थी यह सम्भव युवाओं के प्रेरणास्रोत तथा आदर्श व्यक्त्वि के धनी माने जाते रहे स्वामी विवेकानंद जी के उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही हो सका था ,स्वामी जी सही मायनों में वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे,12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद जी अपने 39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में समूचे विश्व व भारतवर्ष को अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी एंव युवाओं में राष्ट्र भक्ति का संचार करती रहेगी ,वे एक ऐसे महान सन्यासी संत थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रहेगी । उन्होंने भारतवर्ष को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए सदैव युवा शक्ति पर भरोसा किया, तथा युवाओं को आगे लाने के लिए प्रबल जोर दिया। स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने ओजस्वी भाषण सभी दुनिया को अचंभित कर दिया उन्होंने ने हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरूआत ‘मेरे अमेरिकी भाईयो

तकनीक बदल रही कृषि की परिभाषा

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आखिर एक किसान हूँ

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आखिर एक किसान हूँ ना मेरा नाम बड़ा ना मेरी पहचान बड़ी। ना मेरी मुलाकात बड़ी ,हर तड़फ ओर मुश्किल ,संघर्ष पहचान मेरी। रोता,गाता फिरता हूँ दरबारों की चौखट पर, दिनभर कमाता हु फिर भी सुख नही पाता हूं क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । टूटी झोपड़ी, फ़टे हैं कपड़े हालत से बेजार हुँ , दिनभर माटी में तड़फता हूं क्योंकि संघर्ष ही पहचान है मेरी । कर्ज के बोझ से मर रहा हूँ रोज,भूखे पेट सो रहा हुँ रोज ,उगती तपन को देख रहा हूँ रोज क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । पेट भर सकू सब का इसलिए खुद भूखा सो जाता हूं,  धरती से हो हरियाली यह सोच लिए फिरता हूँ, फिर भी कुछ नही कर पाता हूँ क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । प्रकृति के हर रूप को झेला है मैंने, तूफानों से भी लड़ना सिखा है मैंने, जब देश को जरूरत पड़ी तो हर विपदा को मैने झेला है, क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । जिन्दगी से खूब लड़ना सिखा है मैंने, हर विकट परिस्थिति को झेला है मेने, देश की अर्थव्यवस्था की जान बचाते फिरता हूँ, क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । में हर तरफ से शोषित हुआ  कभी सरकारों से कभी बाजार से, काले पीले बीजो से फसल मैं उगाता हूँ, फिर भी में फायदा उठा नह