आखिर एक किसान हूँ ना मेरा नाम बड़ा ना मेरी पहचान बड़ी। ना मेरी मुलाकात बड़ी ,हर तड़फ ओर मुश्किल ,संघर्ष पहचान मेरी। रोता,गाता फिरता हूँ दरबारों की चौखट पर, दिनभर कमाता हु फिर भी सुख नही पाता हूं क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । टूटी झोपड़ी, फ़टे हैं कपड़े हालत से बेजार हुँ , दिनभर माटी में तड़फता हूं क्योंकि संघर्ष ही पहचान है मेरी । कर्ज के बोझ से मर रहा हूँ रोज,भूखे पेट सो रहा हुँ रोज ,उगती तपन को देख रहा हूँ रोज क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । पेट भर सकू सब का इसलिए खुद भूखा सो जाता हूं, धरती से हो हरियाली यह सोच लिए फिरता हूँ, फिर भी कुछ नही कर पाता हूँ क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । प्रकृति के हर रूप को झेला है मैंने, तूफानों से भी लड़ना सिखा है मैंने, जब देश को जरूरत पड़ी तो हर विपदा को मैने झेला है, क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । जिन्दगी से खूब लड़ना सिखा है मैंने, हर विकट परिस्थिति को झेला है मेने, देश की अर्थव्यवस्था की जान बचाते फिरता हूँ, क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । में हर तरफ से शोषित हुआ कभी सरकारों से कभी बाजार से, काले पीले बीजो से फसल मैं उगाता हूँ, फिर भी में फायदा उठा नह