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डॉ हेडगेवार ध्येयनिष्ठ राष्ट्रभक्त एंव भविष्यदृष्टा थे

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डॉ हेडगेवार पुण्यतिथि विशेष  किसी भी परिस्थिति में समाज की सेवा के लिए, डटे रहने वाले स्वयंसेवियों का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। आज डॉ. हेडगेवार जी की पुण्यतिथि है। समाज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां संघ का सेवा प्रकल्प न चल रहा हो वन्यप्रांत के वनवासी बहुल समाज से लेकर महानगरों तक में संघ, व्यक्ति निर्माण का कार्य कर रहा। परमवैभवशाली राष्ट्र’ इस सर्वोच्च / सर्वोत्तम ध्येय के लिए कटिबद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक युगपुरुष डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 को विजयदशमी के दिन नागपुर में अपने घर पर लगाई गई एक नन्हीं सी संघ-शाखा आज विश्व का सबसे बड़ा शक्तिशाली, अनुशासित एवं ध्येयनिष्ठ संगठन बन गया है। अपने बाल्यकाल से लेकर जीवन की अंतिम श्वास तक भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहने वाले डॉ. हेडगेवार ने 21 जून 1940 को पूर्ण स्वतंत्रता और अखंड भारत कहते कहते अपने प्राण छोड़े थे। एक शक्तिशाली राष्ट्रव्यापी हिन्दू संगठन के निर्माण के लिए स्वयं को तिल-तिल कर जलाने वाले डॉ. हेडगेवार वास्तव में युगपुरुष थे।

मानवीय क्रियाकलापों के कारण गहराता पर्यावरण संकट, भविष्य के लिए वैश्विक खतरा

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मानवीय क्रियाकलापों के कारण गहराता पर्यावरण संकट, भविष्य के लिए वैश्विक खतरा

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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष आज विश्व पटल पर,पर्यावरण की शुद्धता के ऊपर जो संकट गहराया है। वह सब मानव के ही क्रिया कलापों का परिणाम है। जिसने अन्य जीवों के जीवन को भी खतरे की कगार पर खड़ा कर दिया है, समस्त विश्व पटल, अनेक सजीव निर्जीव, सूक्ष्म जीवों के संयोग से बना हुआ है, जिसमें मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसमें सोचने समझने की शक्ति व तर्क के आधार पर अपने कार्य को अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता है। आज मानव प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का सपना देखने लगा है। यही कारण है कि आज प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ गया है। जीवनदायिनी प्रकृति कुपित होकर विनाश की ओर अग्रसर है, परन्तु मनुष्य इस असन्तुलन के प्रति अब भी सावधान नहीं हो रहा है, फलतः पर्यावरण सुरक्षा की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। पर्यावरण और प्राणियों का घनिष्ठ सम्बन्ध है, परन्तु मानवीय महत्त्वाकांक्षाओं, प्रतिस्पर्धाओं के चलते पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है। प्रदूषण के आधिक्य से पृथ्वी के अनेक जीव और वनस्पतियाँ लुप्त हो गए हैं और अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। यदि पर्यावरण पर संकट इसी गति से बढ़ता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं ह