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कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु आए नए तीन कृषि अध्यादेशों का समग्र मूल्यांकन

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 भारत उन विकासशील देशों में से है जिनकी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर है। इसी कारण दुनिया के नक्शे पर भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, इसी कारण तकनीकी युग में भी खेती-बाड़ी कुछ लोगों का मुख्य व्यवसाय है। किन्तु आज के परिदृश्य में देखा जाए तो किसानों के सामने बहुत सी विकट समस्याएं है जिनका निवारण आज तक सम्भव नही हुआ, गत वर्षो में बहुत सी सरकारे आई और चली गयी सिर्फ किसानों और कृषि वर्ग की समस्याओं पर लीपापोती ओर राजनीति होती रही। किन्तु अब बात हो रही किसानों के लिए लाए गए कृषि सुधार नए विधेयकों की जिस कारण जगह जगह विरोध हो रहा विरोध क्यों हो रहा ,ओर इसके पीछे क्या कारण ,क्या वजह है समझने की आवश्यकता है क्या पक्ष और क्या विपक्ष के तर्क है समझते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों से जुड़े तीन अध्यादेश जून 2020 में लेकर आई, जिन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन व सुविधा) अध्यादेश, दूसरा मूल्य आश्वासन एवं कृषि समझौता अध्यादेश और तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश। नए अध

11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिया अमेरिका में ऐतिहासिक भाषण

आज ही के दिन यानी 11 सितम्बर 1893 को विश्व पटल पर भारत की पहचान बनी थी यह सम्भव युवाओं के प्रेरणास्रोत तथा आदर्श व्यक्त्वि के धनी माने जाते रहे स्वामी विवेकानंद जी के उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही हो सका था ,स्वामी जी सही मायनों में वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे,12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद जी अपने 39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में समूचे विश्व व भारतवर्ष को अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी एंव युवाओं में राष्ट्र भक्ति का संचार करती रहेगी ,वे एक ऐसे महान सन्यासी संत थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रहेगी । उन्होंने भारतवर्ष को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए सदैव युवा शक्ति पर भरोसा किया, तथा युवाओं को आगे लाने के लिए प्रबल जोर दिया। स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने ओजस्वी भाषण सभी दुनिया को अचंभित कर दिया उन्होंने ने हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरूआत ‘मेरे अमेरिकी भाईयो

तकनीक बदल रही कृषि की परिभाषा

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आखिर एक किसान हूँ

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आखिर एक किसान हूँ ना मेरा नाम बड़ा ना मेरी पहचान बड़ी। ना मेरी मुलाकात बड़ी ,हर तड़फ ओर मुश्किल ,संघर्ष पहचान मेरी। रोता,गाता फिरता हूँ दरबारों की चौखट पर, दिनभर कमाता हु फिर भी सुख नही पाता हूं क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । टूटी झोपड़ी, फ़टे हैं कपड़े हालत से बेजार हुँ , दिनभर माटी में तड़फता हूं क्योंकि संघर्ष ही पहचान है मेरी । कर्ज के बोझ से मर रहा हूँ रोज,भूखे पेट सो रहा हुँ रोज ,उगती तपन को देख रहा हूँ रोज क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । पेट भर सकू सब का इसलिए खुद भूखा सो जाता हूं,  धरती से हो हरियाली यह सोच लिए फिरता हूँ, फिर भी कुछ नही कर पाता हूँ क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । प्रकृति के हर रूप को झेला है मैंने, तूफानों से भी लड़ना सिखा है मैंने, जब देश को जरूरत पड़ी तो हर विपदा को मैने झेला है, क्योंकि संघर्ष ही पहचान मेरी । जिन्दगी से खूब लड़ना सिखा है मैंने, हर विकट परिस्थिति को झेला है मेने, देश की अर्थव्यवस्था की जान बचाते फिरता हूँ, क्योंकि संघर्ष पहचान मेरी । में हर तरफ से शोषित हुआ  कभी सरकारों से कभी बाजार से, काले पीले बीजो से फसल मैं उगाता हूँ, फिर भी में फायदा उठा नह