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त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान

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किसान दिवस विशेष 23 दिसम्बर   किसान शब्द अपने आप में बहुत ही विस्तृत ओर व्यापक है किन्तु जैसे यह शब्द सुनते ही सभी के दिमाग में एक अलग ही छवि सी बन जाती है जैसे कोई खेत में हल जोत रहा है और माथे पर चिंता की लकीरें लिए आसमान की तरफ देख रहा है ,फसलें हरीभरी होने के लिए वर्षा की पुकार कर रहा है वही किसान देश का अन्नदाता कहलाता है जिनके बगैर अन्न का एक दाना भी मिलना मुश्किल है त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान, वह जीवन भर मिट्‌टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते, किसान दिन रात मेहनत कर अपने पसीने के खेत सींचकर हमारे लिए फसल उगाता है तब जाकर हमारा पेट भर पाता है अगर फसल की पैदावार बेहतर नहीं हुई तो किसान के साथ साथ, रसोई से लेकर, देश भर में महंगाई की चर्चा शुरू हो जाती है हमारे थाली में भरा पूरा पकवान इसलिए रहता है क्योंकि किसान खलिहान में पसीना बहाता है अपने खेत की मिट्टी में खुशियों के बीज लगाकर अपने खून पसीने से सींच कर उत्पादन पैदा करता है और सारे लोगों का पेट भरता है। हमारे देश की लगभ