कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु आए नए तीन कृषि अध्यादेशों का समग्र मूल्यांकन

 भारत उन विकासशील देशों में से है जिनकी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर है। इसी कारण दुनिया के नक्शे पर भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, इसी कारण तकनीकी युग में भी खेती-बाड़ी कुछ लोगों का मुख्य व्यवसाय है।

किन्तु आज के परिदृश्य में देखा जाए तो किसानों के सामने बहुत सी विकट समस्याएं है जिनका निवारण आज तक सम्भव नही हुआ, गत वर्षो में बहुत सी सरकारे आई और चली गयी सिर्फ किसानों और कृषि वर्ग की समस्याओं पर लीपापोती ओर राजनीति होती रही।

किन्तु अब बात हो रही किसानों के लिए लाए गए कृषि सुधार नए विधेयकों की जिस कारण जगह जगह विरोध हो रहा विरोध क्यों हो रहा ,ओर इसके पीछे क्या कारण ,क्या वजह है समझने की आवश्यकता है क्या पक्ष और क्या विपक्ष के तर्क है समझते है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों से जुड़े तीन अध्यादेश जून 2020 में लेकर आई, जिन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन व सुविधा) अध्यादेश, दूसरा मूल्य आश्वासन एवं कृषि समझौता अध्यादेश और तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश।

नए अध्यादेश इस प्रकार है 

1 .कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 -

इस अध्यादेश का उद्देश्य किसानों और व्यापारियों को कृषि उत्पाद विपणन समिति’ (Agricultural Produce Market Committee- APMC) की सीमाओं से बाहर व्यापार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध करना था

यह अध्यादेश राज्य कृषि उत्पादन विपणन संघों के तहत अधिसूचित बाज़ारों के बाहर अवरोध मुक्त अंतर-राजकीय व्यापार और वाणिज्य को भी बढ़ावा देता है।

साथ ही या किसानों को अपनी सुविधा के अनुसार कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

2 .मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’:

इस अध्यादेश में भारतीय कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों (छोटी जोत, मौसम पर निर्भरता और बाज़ार की अनिश्चितता आदि) को दूर करने के उद्देश्य से कुछ सुधार प्रस्तावित किये गए हैं।

इस अध्यादेश में किसानों को अपनी उपज की बिक्री हेतु सीधे प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि से जुड़ने की व्यवस्था दी गई है।

3 .आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020:

इस अध्यादेश के माध्यम से सरकार ने अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रस्ताव किया है।

ये तो हुई इन तीनों बिल की बात. एक बार संक्षेप में जान लेते हैं कि तीनों विधेयकों में क्या हैः

– किसान सरकारी मंडियों के बाहर भी अपनी फसल बेच सकेंगे. उन्हें बिचौलियों के झंझट में नहीं फंसना पड़ेगा.

– किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकेंगे ताकि उनकी फसल की तय कीमत उन्हें मिल सके।

– किसान या व्यापारी अनाज, दलहन, तिलहन, सब्ज़ियों का भंडारण कर सकते हैं. किसान अपनी सब्जियों को अपने हिसाब से बेच सकते हैं।

अब इनका विरोध क्यों इसे समझते उनके पीछे क्या कारण है  - पहला तर्क है कि सरकारी मंडियों में फसल की एक न्यूनतम कीमत मिलने का प्रावधान था. लेकिन मंडी के बाहर वो न्यूनतम कीमत मिलेगी या नहीं, इसे लेकर कोई नियम इस बिल में है या नहीं

- इसके अलावा अन्य तर्क है कि एपीएमसी मंडी में जो आढ़तिये अभी उनसे फसल खरीदते हैं, उन्हें मंडी में व्यापार करने के लिए लाइसेंस लेना होता है. एपीएमसी एक्ट के तहत वेरिफिकेशन के बाद ही उन्हें लाइसेंस मिलता है. ऐसे में किसान इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि वो धोखाधड़ी नहीं करेंगे. नए बिल में लिखा है कि कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड हो, वो किसान से फसल ले सकता है.

- ओर अन्य तर्क सरकार स्टॉक करने की छूट दे रही है. लेकिन ज्यादातर किसानों के पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है. सब्जी किसानों के पास सब्जियों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज नहीं है. ऐसे में उन्हें उत्पादन के बाद अपनी फसलें औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचनी होंगी.

- इसके अलावा इन अध्यादेशों का विरोध करने वालों का आरोप है कि ये तीनों अध्यादेश मंडी व्यवस्था को खत्म कर देंगे। 

पर तीनों अध्यादेश पढ़कर ऐसा कहीं से नहीं लगता। उनकी इस शंका का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता, बल्कि विरोध तथ्यात्मक नजर नही आता ।

अब इनका यह भी विरोध है जब किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल रहा है या नहीं.

दूसरे जब मंडी व्यवस्था जारी रहेगी तो MSP का सवाल भी बेमानी लगता है, क्योंकि मंडी व्यवस्था में एमएसपी ऐसे ही लागू रहेगा। हैरानी इस बात से होती है कि जो संगठन अब तक मंडी व्यवस्था को शोषण का केंद्र मानते थे, वही संगठन अब मंडी व्यवस्था के गुणगान में लगे हुए हैं।

दरअसल खेती में सबसे ज्यादा मुश्किल उसकी मार्केटिंग में आती है। खेत में कुछ भी उगाना उतना मुश्किल नहीं होता। मुश्किल होता है, उस फसल का बढ़िया दाम मिलना। दाम नहीं मिलने की स्थिति में किसान अपनी फसलों को विरोध स्वरूप सड़कों तक पर डाल देते थे।

इस बढ़िया दाम को लेकर राजनीति ज्यादा होती रही है, दामों की असल चिंता कम होती है। या यूँ कह सकते हैं कि किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम कैसे मिल सकता है, इसको लेकर गंभीरता से विचार-विमर्श कम होता है। खैर, इन अध्यादेशों से एक उम्मीद बढ़ी है कि खेती उत्पादों के बिक्री और खरीद में इजाफा होगा और किसानों की खुशहाली का रास्ता खुलेगा।

कुछ जगह यह भी विरोध उभरकर सामने आया है कि कंपनियाँ किसानों को बढ़िया कीमत देने से मुकर जाएँगी। जबकि अध्यादेश में साफ है कि सभी कमिटमेंट (समझौते) लिखित रूप में होंगे। जिसका उद्देश्य यह है कि किसान अपने कृषि उत्पादों को स्पॉन्सर्स को आसानी से बेच सकें।

स्पॉन्सर में व्यक्ति, पार्टनरशिप फर्म्स, कंपनियाँ, लिमिटेड लायबिलिटी ग्रुप्स और सोसाइटियाँ कोई भी शामिल हो सकते हैं।

कृषि समझौते में उनकी भूमिका और सेवाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख होगा। समझौते में दोनों पक्ष मिलकर कृषि उत्पाद की सप्लाई, गुणवत्ता, मानदंड और मूल्य से संबंधित नियमों और शर्तों तथा कृषि सेवाओं की सप्लाई से संबंधित नियमों का उल्लेख कर सकते हैं।

एक चिंता यह भी जताई जा रही है कि कंपनियाँ या खरीदार खरीदते वक्त किसानों से पहले से तय मूल्य देने से मुकर सकते हैं। जबकि इसमें साफ है कि मूल्य पहले से निर्धारित होंगे और लिखित में होंगे। मूल्य में बदलाव की स्थिति में समझौते में निम्नलिखित चीजें शामिल होनी चाहिए:

1. ऐसे उत्पाद के लिए गारंटीशुदा मूल्य

2. गारंटीशुदा मूल्य के अतिरिक्त राशि, जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ।

सबसे बड़ी चिंता यह जाहिर की जा रही है कि किसान कोर्ट में अपना केस नहीं ले जा सकते, जबकि किसान और कंपनियाँ दोनों ही के बीच उठे विवाद को निपटाने के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित की गई है। विवाद निपटारे के लिए कन्सीलिएशन बोर्ड और सुलह की प्रक्रिया के लिए कृषि समझौता प्रदान किया है। अगर तीस दिनों में बोर्ड विवाद का निपटारा नहीं कर पाता, तो पक्ष समाधान के लिए सब डिविजनल मेजिस्ट्रेट (SDM) से संपर्क कर सकते हैं। उनके पास यह अधिकार होगा कि मेजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी (कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टड की अध्यक्षता वाली) में अपील कर सकते है।

बाकी फिलहाल इस समय की बात करे तो अध्यादेश किसान और कंपनियों दोनों के लिए फायदे का ही सौदा लग रहा है। बाकी अमल में आने के बाद की समस्याओं को लेकर अभी से भय खड़ा करना किसानों को डरा सकता है।जिसके कारण किसान इस दिशा में आगे बढ़ने से पीछे हट सकते हैं। इसलिए किसानों के भीतर भय का माहौल बनाकर किसानों का नुकसान नहीं करना चाहिए ,पहले अमल में लाना चाहिए।

मंडी व्यवस्था इसे ऑपन मार्केट बनाने में बड़ी बाधक थी, जिसे अध्यादेश के जरिए वैकल्पिक बनाया गया है।

अब यह किसान पर निर्भर करता है कि वह मंडी में सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी पर बेचते हैं या खुले बाजार में बेहतर भाव पर बेचते हैं। उसके सामने ये दो विकल्प खुल गए हैं। दूसरा वैकल्पिक व्यवस्था से सरकार के बजट पर अतिरिक्त बोझ कम होगा और जो युवा खेती से जुड़े क्षेत्रों में बिजनेस करना चाहते हैं, उनके लिए अपार संभावनाएँ खुलेंगी।

इस अध्यादेश को किन नियमों और रेगुलेशन के तहत चलाएँगे। इन सभी नियमों को सरकार लोकसभा और राज्यसभा में विचार-विमर्श के बाद तय करेगी।

अगर अध्यादेशों का सूक्ष्म अध्ययन करने पर एक बात तो साफ है कि इसमें कुछ भी किसान विरोधी नहीं है, बल्कि किसानों के प्रोटेक्शन का विशेष ध्यान रखा गया है। बल्कि सरकार ने किसानों को इन अध्यादेशों के माध्यम से एक वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया कराई है। ताकि किसान अपनी फसल मंडी व्यवस्था या ऑपन मार्केट जहाँ मन करे और जहाँ ज्यादा मुनाफा मिले बेच सकता है।

ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले इस तरह की कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या राज्य के भीतर व बाहर एग्रीकल्चर व्यापार नहीं होता था। बस फर्क यह है कि अबकी बार सरकार सीधे तौर पर किसान और व्यापारी के साथ खड़ी होकर इस व्यवसाय को मोनिटर कर सकेगी।

कुछ संगठनों ने यह भी आरोप लगाया है कि इससे एमएसपी खत्म होगा। लेकिन किसी ने भी ये नहीं बताया कि कैसे खत्म होगा? इसलिए उनके कहे में सच कम और राजनीतिक अंध विरोध ज्यादा है। एक तपका यह भी आवाज उठा रहा है कि ऑपन मार्केट से किसानों को उनकी फसल के रेट कम मिलेंगे। जबकि बहुत से किसान प्राइवेट व्यापारियों से व्यापार करेंगे तो सरकार पर आर्थिक बोझ कम होगा। सरकार का अतिरिक्त बोझ कम होगा तो सरकार भी किसानों को बढ़िया रेट (एमएसपी) देने के लिए बाध्य होगी।

हालाँकि इन अध्यादेशों का एमएसपी से सीधा कोई संबंध नहीं है, क्योंकि यह सभी किसानों पर लागू नहीं होगा।

वैकल्पिक व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं। उनके लिए ही ये अध्यादेश लाए गए हैं। अब यह तो किसानों को तय करना है कि वह अपनी फसल सरकार को बेचता है या व्यापारी या कंपनी को।

किसान और व्यापारी के बीच डील में किसानों के ठगे जाने के डर को लेकर भी चिंता व्यक्त की जा रही है। जो कि वाजिब भी हैं। परंतु इन समझौतों में अगर जागरूक संस्थाएँ या गाँव के प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे तो लिखित समझौतों में किसानों के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के छल से उन्हें बचाया जा सकता है।

इधर केंद्र सरकार के कृषि मंत्री स्पष्ठ कर चुके है कि मौजूदा एपीएमसी मंडियां काम करना जारी रखेंगी. राज्य एपीएमसी कानून बना रहेगा. लेकिन मंडियों के बाहर, अध्यादेश लागू होगा.' उन्होंने कहा कि अध्यादेश मूल रूप से एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर अतिरिक्त व्यापारिक अवसर पैदा करने के लिए है ताकि अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके.

उन्होंने कहा कि पैन कार्ड वाले किसी भी किसान से लेकर कंपनियां, प्रोसेसर और एफपीओ अधिसूचित मंडियों के परिसर के बाहर बेच सकते हैं. खरीदारों को तुरंत या तीन दिनों के भीतर किसानों को भुगतान करना होगा और माल की डिलीवरी के बाद एक रसीद प्रदान करनी होगी.


सरकार का तर्क:

एमसपी पूर्व की तरह जारी रहेगी, एमएसपी पर किसान अपनी उपज विक्रय कर सकेंगे। रबी की एमएसपी घोषित कर दी है।

मंडिया समाप्त नहीं होंगी, वहां पूर्ववत व्यापार होता रहेगा। इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प प्राप्त होगा।

मंडियों में ई-नाम ट्रेडिंग व्यवस्था भी जारी रहेगी।

इलेक्ट्रानिक प्लेटफार्मों पर कृषि उत्पादों का व्यापार बढ़ेगा। पारदर्शिता के साथ समय की बचत होगी।

सरकार के द्वारा इन विधेयकों को लाने की पीछे महत्वकांक्षा- 

देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान हैं, जिन्हें अपनी कम मात्रा की उपज को बाजारों में ले जाने और उसका अच्छा मूल्य प्राप्त करने में कठिनाई होती है। आमतौर पर, अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए वाहन क्षमता के अनुरूप पर्याप्त वजन न होने व बातचीत क्षमता की कमी के कारण किसानों को परिवहन लागत के लिए ज्यादा पेमेंट करना पड़ता है। ऐसी कठिनाइयों से किसानों को बचाते हुए अब खेत से उपज की गुणवत्ता जांच, ग्रेडिंग, बैगिंग व परिवहन की सुविधा मिल सकेगी।

किसी भी प्रकार की वित्तीय धोखाधड़ी से बचने के लिए किसानों को उनकी उपज के गुणवत्ता आधारित मूल्य के रूप में अनुबंधित भुगतान किया जाता है। कृषि उपज के लिए करारों को बढ़ावा देने से इनकी उच्च गुणवत्ता तथा निर्धारित आमदनी की प्रक्रिया मजबूत होती है, जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न चरणों में कृषि को जोखिम से बचाना है। ये करार उच्च मूल्य वाली कृषि उपज के उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए उद्यमियों द्वारा निवेश को बढ़ाने तथा निर्यात को बढ़ावा देने में मददगार होंगे। कृषि समझौते के तहत विवाद होने पर सुलह व विवाद निपटान तंत्र भी काम करेगा

इस अध्यादेश के बाद अब किसान की उपज के खरीदार बढ़ जाएंगे। अब बड़ी कंपनियां उपज की खरीद की लाइन में आ जाएगी। पहली बार बाजार में आढ़तियों का एकाधिकार जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा था, टूटने जा रहा है

भारत में छोटे किसानों की संख्या ज्यादा है, करीब 85 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है, ऐसे में उन्हें बड़े खरीददारों से बात करने में परेशानी आती थी। इसके लिए वह या तो बड़े किसान या फिर बिचौलियों पर निर्भर होते थे। फसल के सही दाम, सही वक्त पर मिलना संभव नहीं होता था। इन विधेयकों के बाद वह आसानी से अपना व्यापार कर सकेंगे

तीनों कानून अहम हैं और कृषि के क्षेत्र में ऐसे बदलाव लाने वाले हैं जिनकी लंबे समय से जरूरत बताई जाती रही है। लेकिन अगर इन बदलावों को लेकर किसान आशंकित दिख रहे हैं तो वह भी अकारण नहीं है। समझना होगा कि अपनी फसल कहीं भी और किसी को भी बेचने की आजादी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं देती। जहां तक अनाज की खरीद और भंडारण पर से रोक हटाने और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ओर बढ़ने का सवाल है तो ये दोनों चीजें अतीत के हमारे कड़वे अनुभवों से जुड़ी हैं। इन्हें समझना होगा।


आगे की राह में देखना होगा -

न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी भ्रांतियां दूर करने के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने रबी की छह फ़सलों की नई एमएसपी जारी की गई है। बढ़ा हुआ एमएसपी किसानों को सशक्त करेगा और उनकी आय दोगुनी करने में योगदान देगा। संसद में पारित कृषि सुधारों से संबंधी क़ानून के साथ-साथ बढ़ा हुआ एमएसपी किसानों की गरिमा और समृद्धि सुनिश्चित करेगा।

हालांकि सरकार के द्वारा किसानों में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ एमएसपी से जुड़ी चुनौतियों को भी दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अतीत में कांटेक्ट फॉर्मिंग के अनुभवों से सीख लेते हुए सरकार को किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि सरकार किसानों के हितों की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्ध है।

कृषि उत्पादों के उचित मूल्य दिलवाने हेतु सहकारिता की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए जिससे कृषकों की आय में उचित बढ़ोतरी हो सके। एक देश, एक बाजार' कृषि व कृषक को जनपदीय सीमाओं से मुक्ति का नारा है। यह मुक्ति शुभ है या किसी बड़े बंधन का संकेत, यह विचारणीय है। फिर भी हमारे किसानों की जनपद, प्रदेश से आगे की यह राष्ट्रीय भागीदारी स्वागत योग्य है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। कृषि और कृषक का भविष्य सार्थक हो ,


- पवन सारस्वत मुकलावा

 कृषि लेखक ,बीकानेर

 सदस्य लेखक ,मरुभूमि राइटर्स फोरम जोधपुर

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सटीक एवय सत्य से परिचय करवाता आलेख।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लिखा भाई
    किसानों को गुमराह करने की कोशिश हो रही है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सारगर्भित एवं सटीक विश्लेषण के लिए साधुवाद

    रामदास सोनी
    श्रीविजयनगर

    जवाब देंहटाएं
  4. हिंदुत्व पर ज्ञान पेलने वाले वो हि है जिन्हें असल में हिंदुत्व का मतलब नही पता, गाय पर ज्ञान पेलने वाले वो हि है जिनके घर पर आज तक गाय नहीं पाली गई उसी तरह कृषि बिल पर भी वही ज्ञान पेल रहे हैं जिन्हें असल में खेत में अन्नदाता नजर ही नहीं आता वो तो यही सोच रहे हैं कि हमारे बल पर ही किसान खेती कर रहा है हमारे राजस्थानी में एक कहावत है कि गंडक जाने गाड़ी मेर तान चाले, वाली कहावत आज के कृषि विशेष्ञों पर सटीक बैठती नजर आती है

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. इन अनपढ़ लोगों को कौन बताए कि msp क्या है कइयों को तो ये जो कृषि के तीन बिल हैं इनके बारे में भी पता नहीं होगा और ये हमारे देश के किसान भाइयों को गुमराह कर रहे हैं
    विक्रम राजपूत
    मैनपुरी (उत्तर प्रदेश)

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान

पर्यावरण पर गहराता संकट, भविष्य के लिए वैश्विक चुनौती

11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिया अमेरिका में ऐतिहासिक भाषण