सादगी की प्रतिमूर्ति थे ,लाल बहादुर शास्त्री

जन्म जयंती विशेष 
2 अक्टूबर के दिन देश की राजनीति के अधिकांश नेता जिनको याद करना भूल जाते है आरोप-प्रत्यारोप करने वाले नेतागण उस महान शख्स की महानता को नहीं समझ सकते जिन्होंने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी किसी गलत कार्य से नहीं की ,ऐसे महान शख्स का नाम है लाल बहादुर शास्त्री जिनका जन्म आज ही के दिन 2 अक्टूबर, 1904 को एक सामान्य निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था।
भारतीय राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री का नाम अगर स्वर्णाक्षरों से लिखे जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही है ,पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व थे. उनका पूरा जीवन हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है।
एक गरीब स्कूल शिक्षक के सुपुत्र व कम उम्र में ही अनाथ हो जाने वाले शास्त्री ने गरीबी में जीवन गुज़ारा ,इसीलिए उन्हें जनता की ज़रूरतों, उनके दुखों व कष्टों का अच्छे से भान था. शास्त्री अनवरत् जूझने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने नौ साल अंग्रेजो की जेल में गुज़ारे थे. वे बेहद प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, उत्साह, उमंग व जोश से भरे, अपने लक्ष्य पर नज़र रखने वाले, बेहद विनम्र, सभ्य व भले मानस व्यक्ति. ऐसा व्यक्ति जो शब्द चयन में सावधानी रखते हुए कम शब्दों के सहारे अपनी बात पूरी कह देने में दक्ष थे, साथ ही अपने निश्चय व कर्मों में अडिग. परिस्थितियों की भट्टी में तपे शास्त्री जी को घरेलू संस्कार के साथ पारंपरिक ज्ञान भी मिला था, जो बड़ा फलदायी सिद्ध हुआ. ऐसे सज्जन पुरुष थे, जिनकी सामान्य समझ बहुत विकसित थी. वे बेहद ही सादगीपसंद व ईमानदार राजनेता थे,सादगी से उनका गहरा रिश्ता था ,आज महान व्यक्तित्व के सादगी व महानता के कई किस्से हैं। 
संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् देशसेवा का व्रत लेते हुए अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की थी । भारतीय राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, आदर्श की एवं सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने के आदर्श को जीने वाले भारतीय राजनीति के महानायक, अजातशत्रु, स्वतंत्रता सेनानी श्री शास्त्री जी ने अपनी ईमानदारी, राष्ट्रप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा, सादगी, सरलता एवं निस्वार्थ देशसेवा से न केवल देश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाकर, अमिट यादों को जन-जन के हृदय में स्थापित कर गए, नाटा कद और सांवला रंग देख कई बार लोग उन्हें बेहद कमजोर मानने लगते थे लेकिन उन्होंने अपने इरादों से हमेशा जाहिर किया कि वह भी दृढ़-संकल्प और दृढ़-निश्चयी व्यक्तित्व के धनी हैं. 
लाल बहादुर शास्त्री ने 26 जनवरी, 1965 को देश के जवानों और किसानों को अपने कर्म और निष्ठा के प्रति सुदृढ़ रहने और देश को खाद्य के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया ,यह नारा आज भी भारतवर्ष में लोकप्रिय है ,नारा देने वाले शास्त्री जी किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के जवानों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था, जय जवान-जय किसान का नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी बढ़ाया था ।
उन्होंने देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह पर भी उसे आगे ले गए। शास्त्री जी के शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया, इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत से हुआ था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी ,शास्त्री 19 माह प्रधानमंत्री रहे और उनके इस कार्यकाल का ज्यादातर समय भारत-पाक के बीच मौजूद तनाव व दोनों देशों के आपसी रिश्तों को सामान्य करने के संघर्ष से जूझते गुजरा. 
इसी तनाव के बीच शास्त्री जी ने हुंकार भरते हुए घोषणा की कि, “जब तक ज़रुरत पड़ी, हम भले गरीबी में रह लेंगे, लेकिन अपनी स्वतंत्रता व अखंडता से समझौता नहीं करेंगे.” युद्ध के चलते देश में खाद्यान्न की कमी हो गई. संयुक्त राज्य अमेरिका ने मौका परस्ती का सबूत देते हुए भारत को खाद्यान्न का निर्यात रोकने की धमकी दे डाली. शास्त्री जानते थे कि खाद्यान्न के लिए भारत पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है, लेकिन वे इस धमकी के आगे नहीं झुके.उस समय की नाज़ुक परिस्थितियों के मद्देनज़र शास्त्री जी ने देश के आमजन से आह्वान किया कि सप्ताह में एक दिन उपवास रखा जाए. इसके लिए उन्होंने अपना उदाहरण सामने रखा कि ‘कल से शाम को एक सप्ताह तक मेरे घर में चूल्हा नहीं जलेगा.’ उनके इस आग्रह का देश पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा. घर तो ठीक, कई रेस्त्रां व होटल्स ने भी कुछ दिनों तक शाम को अपने चूल्हे बंद रखे.
उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।
लालबहादुर शास्त्री इतने ईमानदार थे कि उन्‍होंने कभी भी प्रधानमंत्री के तौर पर उन्‍हें मिली हुई गाड़ी का निजी काम के लिए इस्‍तेमाल नहीं किया.
ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी 11 जनवरी 1966 की ही रात को संदिग्ध परिस्थितियों में शास्त्री जी की मौत हो गई थी। उनकी मौत विदेश (रूस) में हुई इस असामयिक मौत पर रहस्य के बादल छाए रहे. उनके परिजनों द्वारा विभिन्न मौक़ों पर इस मौत की जांच की मांग भी की जाती रही.उनकी मौत कैसे हुई, यह इतने साल के बाद आज भी राज है, मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि शास्त्रीजी की मौत हार्ट अटैक के चलते हुई, लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री का आरोप था कि उन्हें जहर दिया गया था।

- पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतत्र लेखक 
बीकानेर , राजस्थान

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