“मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा”


27 फरवरी 1931 को भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद सच में 'आजाद' हो गए थे. इस दिन को जहां लोग मायूसी के लिए जानते हैं वहीं इसी दिन को गर्व के लिए भी जानते हैं. मायूसी इसलिए क्योंकि इसी दिन भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद ने करोड़ों भारतीयों को अलविदा कह दिया था. गर्व इसलिए क्योंकि आजाद ने कहा था कि वह कभी किसी ब्रिटिश सरकार के हाथों में नहीं आएंगे और ना ही उनकी गोली से मरेंगे. इस लिए उन्होंने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए. आज ही के दिन चंद्रशेखर आजाद की मौत इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क अब चंद्रशेखर आजाद पार्क में हो गई थी.
“मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” यह नारा था भारत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले देश के महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का। मात्र 24 साल की उम्र जो युवाओं के लिए जिंदगी के सपने देखने की होती है उसमें चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए।
बहुत छोटी उम्र 14-15 साल की उम्र में चन्द्रशेखर आजाद को ब्रिटिश सरकार द्वारा आंदोलन में भूमिका लेने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद कोड़े खाते हुए बार-बार वे भारत माता की जय का नारा लगाते रहे और जब उनसे उनके पिता नाम पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया था कि मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है और तभी से उनका नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी की जगह चंद्रशेखर आजाद बोला जाने लगा। इस गिरफ्तारी के बाद आजाद ने ब्रिटिशों से कहा था कि अब तुम मुझे कभी नहीं पकड़ पाओगे।
उनको अपने बेखौफ अंदाज तथा अंग्रजों के हाथों कभी भी जीवित गिरफ्तार न होने की अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहने के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है.
उनकी वीरता की गाथा देशवासियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है। चंद्रशेखर की सबसे बड़ी ख्वाहिश देश को आजाद कराने की थीं। उनकी ये ख्वाहिश तो पूरी हो गई थी लेकिन उसे पूरा होते देखने के लिए आजाद दुनिया में नहीं थे।
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के एक आदिवासी ग्राम भाबरा में हुआ था। काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में सम्मिलित निर्भीक महान देशभक्त व क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम् स्थान रखता है। 14 साल की उम्र में चंद्रशेखर घर छोड़कर अपने एक नए सफर पर निकल पड़े।
आजाद की मां को हमेशा उनके लौटने का इंतजार रहा। शायद इसीलिए उन्होंने अपनी दो उंगलियां बांध ली थी और ये प्रण किया था वो इसे तभी खोलेंगी जब आजाद घर वापस आएंगे। उनकी दो उंगलियां बंधी ही रहीं और आजाद ने मातृभूमि की गोद में आज ही के दिन आखिरी सांस ले ली।
ऐसे वीर सपूत को बार बार नमन।


- पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतत्र लेखक 
सदस्य लेखक , मरुभूमि राइटर्स फोरम

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