हम भूल गए

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खाई थी, क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी....
चरखा हरदम खामोश रहा, और अंत देश को बांट दिया....
लाखों बेघर, लाखो मर गए, जब गाँधी ने बंदरबाँट किया.....
जिन्ना के हिस्से पाक गया, नेहरू को हिन्दुस्तान मिला....
जो जान लुटा गए भारत पर, उन्हे ढंग का न सम्मान मिला.....
इन्ही सियासी कुत्तों ने, शेखर को भी आतंकी बतलाया था....
रोया अल्फ्रेड पार्क था उस दिन, एक एक पत्ता थर्राया था....
जो देश के लिए जिये मरे और फाँसी के फंदे पर झूल गए......
हमें कजरे गजरे तो याद रहे, पर अमर पुरोधा हम भूल गए....
पर अमर पुरोधा हम भूल गए.......

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान

पर्यावरण पर गहराता संकट, भविष्य के लिए वैश्विक चुनौती

11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिया अमेरिका में ऐतिहासिक भाषण