सुंदरता हो न हो
सादगी होनी चाहिए
खुशबू हो न हो
महक होनी चाहिए
रिश्ता हो न हो
भावना होनी चाहिए
मुलाकात हो न हो
बात होनी चाहिए
यूं तो उलझे है सभी
अपनी उलझनों में
पर सुलझाने की कोशिश
हमेशा होनी चाहिएं ।
किसान दिवस विशेष 23 दिसम्बर किसान शब्द अपने आप में बहुत ही विस्तृत ओर व्यापक है किन्तु जैसे यह शब्द सुनते ही सभी के दिमाग में एक अलग ही छवि सी बन जाती है जैसे कोई खेत में हल जोत रहा है और माथे पर चिंता की लकीरें लिए आसमान की तरफ देख रहा है ,फसलें हरीभरी होने के लिए वर्षा की पुकार कर रहा है वही किसान देश का अन्नदाता कहलाता है जिनके बगैर अन्न का एक दाना भी मिलना मुश्किल है त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान, वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते, किसान दिन रात मेहनत कर अपने पसीने के खेत सींचकर हमारे लिए फसल उगाता है तब जाकर हमारा पेट भर पाता है अगर फसल की पैदावार बेहतर नहीं हुई तो किसान के साथ साथ, रसोई से लेकर, देश भर में महंगाई की चर्चा शुरू हो जाती है हमारे थाली में भरा पूरा पकवान इसलिए रहता है क्योंकि किसान खलिहान में पसीना बहाता है अपने खेत की मिट्टी में खुशियों के बीज लगाकर अपने खून पसीने से सींच कर उत्पादन पैदा करता है और सारे लोगों का पेट भरता है। हमारे देश की लगभ
पर्यावरण यानि हमारे चारों और मौजूद जीव-अजीव घटकों का आवरण, जिससे हम घिरे हुए हैं जैसे कि जीव-जंतु, जल, पौधे, भूमि और हवा जो प्रकृति के संतुलन को अच्छा बनाएं रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है किंतु जब पर्यावरण शब्द के साथ संकट जुड़ गया तब से विश्व में पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मानने की आवश्यकता महसूस हुई इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसके बाद हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण शब्द सुनने को मिलता है किंतु आजतक इतने वर्षों में क्या हम जागृति ला पाए है पर्यावरण के प्रति , पर्यावरण कार्य हेतु दुनियाभर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है तथापि हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता पड़ रही है। आजकल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर भले ही इस अवसर पर बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जाएं, बड़ी बड़ी गोष्ठियां ओर सम्मेलन किये जाएं या हज़ारों पौधा-रोपण किए जाएं और
आज ही के दिन यानी 11 सितम्बर 1893 को विश्व पटल पर भारत की पहचान बनी थी यह सम्भव युवाओं के प्रेरणास्रोत तथा आदर्श व्यक्त्वि के धनी माने जाते रहे स्वामी विवेकानंद जी के उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही हो सका था ,स्वामी जी सही मायनों में वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे,12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद जी अपने 39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में समूचे विश्व व भारतवर्ष को अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी एंव युवाओं में राष्ट्र भक्ति का संचार करती रहेगी ,वे एक ऐसे महान सन्यासी संत थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रहेगी । उन्होंने भारतवर्ष को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए सदैव युवा शक्ति पर भरोसा किया, तथा युवाओं को आगे लाने के लिए प्रबल जोर दिया। स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने ओजस्वी भाषण सभी दुनिया को अचंभित कर दिया उन्होंने ने हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरूआत ‘मेरे अमेरिकी भाईयो
Good
जवाब देंहटाएं