किसान की महत्ता को समझना आवश्यक
किसान दिवस पर विशेष
देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का अहम योगदान है। कृषि ही देश की रीढ़ की हड्डी है। जब कृषि शब्द प्रयोग होता तो किसान शब्द की प्राथमिकता अपने आप बन जाती अन्यथा कृषि शब्द ही अधूरा है। किसान की धारणा व्यापक एंव विस्तृत है जिसे चंद किताबी लिखावटी पंक्तियों में व्यक्त नही किया जा सकता। आज देश की राजनीति ही किसान पे केंद्रित हो गयी किसान से शुरू होकर किसान पे ही खत्म हो गयी है। क्योंकि जब चुनावी मौसम के बादल प्रकट होते है तब हर जगह किसान शब्द छाया रहता है। राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि चुनाव के समय लंबे लंबे वादे सिर्फ किसान के नाम पर करते हैं परंतु जब किसान पर आपदा आती है तो वह सब कहीं भी दिखाई नहीं देते हैं। और किसानों की तकलीफों को अनदेखा कर देते हैं। कभी चंद दिनों में पूर्ण कर्ज माफी का लालच दिया जाता है कभी मालामाल होने के बड़े सपने दिखाए जाते है। सब कुछ मुफ्त देने की बड़ी बड़ी घोषणा होती है मानो भारत का किसान रातों रात अमीर हो जायेगा। सभी समस्याएं खत्म हो जायेगी जब चुनावी बादल छंट जाते है तब किसानों की दुःखों की पतझड़ को देखने कोई नही आता है। किंतु इन्हीं लोभ लालच दिखाने वाले राजनीतिक दलों को समझना होगा भारत का किसान जो पूरे देश का पेट भरता है। जिसके कठिन परिश्रम की तुलना किसी भी परिश्रम से नहीं की जा सकती, उसे मूर्ख बनाना इतना आसान नही है।
आज देश का बड़ा धनाढ्य पूंजीपति वर्ग हो या बड़े शहरों में निवास करने वाली युवा पीढ़ी हो जो किसानों की महता को नही समझ पा रही है। जहां नई पीढ़ी खेती के बजाय शहरों को पलायन कर मजदूरी श्रेयस्कर मानती है। तो वह ही किसान अपनी भूमि को भगवान रूपी मानता है। जहां पूंजीपति धनाढ्य लोग किसानों को गवार ओर अनपढ़ समझते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल गलत है क्योंकि देश का सबसे सम्मान व्यक्ति ही किसान है। जब किसान को आप गलत समझना शुरू करोगे तो हो सकता है कि भविष्य में आप को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है। किसान खेती करना छोड़ देगा तो देश में भुखमरी छा जाएगी। क्योंकि वह ही असहाय किसान कभी अनावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि का दंश झेलता है तो कभी भरपूर फसल के बावजूद उसका उचित दाम न मिलने और पुराना कर्ज न चुका पाने का दर्द भी झेलता है। ओर वह एक किसान ही है जो पूरे राष्ट्र का पेट भरता है। उसको पालता है। ओर उसका भरण पोषण करता हैं। किसान राष्ट्र की वो संपति है जो पूरे देश के लिए भोजन की उपलब्धता करवाता हैं। धूप में, कड़ाके कि ठंड, सर्दी, बारिश या चाहे किसी भी मौसम में अपनी जी जान लगाकर अपने खेतों में मेहनत करता है। बिना किसी किसान के इस धरती/ दुनिया का होना भी नामुमकिन है।
भारत का गौरव, स्वाभिमान और अभिमान है जिसे हमारा किसान लाख दुख, कष्ट और पीड़ा झेलकर भी गंवाना नहीं चाहता है बल्कि अपने पूरे जीवन के दांव पर लगाकर खेती करते है ताकि भारत का पेट भरता रहे और भारत का कोई भी नागरिक भूखा पेट ना सोयें और यही है हमारी भारतीय किसान की असली और मौलिक पहचान।
भले ही आज के समय में, लोग पढ़ाई-लिखाई करके कितने ही उच्च पदों पर क्यों ना पहुंच जाये लेकिन वे हमारे किसानों की बराबरी नही कर सकते है क्योंकि एक तरफ जहां हमारा किसान खुद को दांव पर लगाकर अर्थात् अपना सर्वस्व न्यौछावर करके राष्ट्र का निर्माण करता है। वहीं दूसरी तरफ उसे इस बात का स्वाभिमान रहता है कि, वो एक किसान है और किसान होना ही उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।
हमारा किसान ना केवल हमारा अन्नदाता है बल्कि त्याग व समर्पण का सबसे बड़ा प्रतीक है क्योंकि हमारा किसान अपने राष्ट्र के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। एक तरफ जहां भारतीय सैनिक, सीमा पर देश की रक्षा करते है वहीं किसान देश के भीतर अपने मौलिक कर्तव्य व दायित्वों का निर्वाह करके देश की सतत सेवा करते है। इसलिए लिए कहा गया है कि, त्याग और समर्पण का प्रतीक है किसान।
देश की युवा पीढ़ी ओर धनाढ्य वर्ग को समझना होगा किसान कोई आम इंसान नहीं होता है बल्कि उसमें एक शिक्षक, चिकित्सक, अर्थशास्त्री और पथ-प्रदर्शक रुपी व्यक्तित्व से परिपूर्ण महा-मानव होता है जो कि, धरती का सीना चीकर फसल उगाता है जिससे ना केवल वो अपने देश का पेट भरता है बल्कि विदेशों में, बड़े पैमाने पर अनाज का निर्यात करके भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मौलिक मजबूती और स्थायित्व प्रदान करता है।
किसान एक अन्नदाता से लेकर एक राष्ट्रनिर्माता तक की संघर्षयुक्त भूमिका को अदा करता है क्योंकि किसान ही उस मंच का निर्माण करता है जहां से हमारे शिक्षक, राजनेता, इंजीनियर, समाज-सेवी और अन्य प्रकार के तत्व राष्ट्र निर्माण के अपने छोटे-छोटे कार्यो का सम्पादन करते है । किन्तु राजनीतिक लोगो को समझना होगा आप उस मिट्टी से निकले हो उस मिट्टी का अन्न खाते हो उस किसान की सार्थकता को दरकिनार मत करो। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि, अन्नदाता से लेकर राष्ट्रनिर्माता की भूमिका अदा करने वाला हमारा बहु-आयामी किसान आज समाज के हाशिये पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है जो कि, ना केवल हमारे लिए बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए चिन्ता का मौलिक विषय है। क्योंकि किसान को कभी राजनीतिक दृष्टि से दबाया जाता है, कभी साहूकारों द्वारा नोचा जाता है ,कभी बड़े वर्ग द्वारा गवार अनपढ़ का तमाचा दिया जाता है। आज किसान दिवस पर बड़े बड़े व्याख्यानों ओर कार्यक्रमों तक सीमित ना रहकर किसानों के मौलिक विषय ओर महता के बारे में सोचना सार्थक होगा।
- पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतंत्र लेखक
बीकानेर,
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